Menu
blogid : 509 postid : 53

पिछले 2 सालों में हुई सरकार की जमकर किरकिरी

सुनो खरी खरी
सुनो खरी खरी
  • 20 Posts
  • 65 Comments

यूपीए सरकार की इस दूसरी पारी को याद रखेगा हिंदुस्तान। ये दो साल घोटालों के नाम रहे। घोटालों के पर्दाफाश के नाम रहे। इन दो सालों में सरकार के साथ-साथ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की साख को भी बट्टा लगा। फौजियों की ईमानदारी का भरम भी टूट गया। हालत ये है कि इस वक्त टेलीकॉम मंत्री रहे ए राजा, करुणानिधि की बेटी कनीमोड़ी और सुरेश कलमाडी समेत कई बड़े लोग जेल में हैं। पूरे रफ्तार से शुरू हुई यूपीए सरकार की दूसरी पारी भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते दो साल में ही रेंगने को मजबूर हो गई है। यूपीए सरकार की दूसरी पारी दागियों से दागदार हो गई। पूर्व टेलीकॉम मंत्री ए राजा और डीएमके सांसद और करुणानिधि की बेटी कनीमोड़ी इस समय तिहाड़ जेल में बंद हैं। यही नहीं, रिलायंस, डीबी रियालिटी और यूनिटेक समेत कई बड़ी कंपनियों के कर्ताधर्ता सलाखों के पीछे हैं। सुरेश कलमाडी समेत कॉमनवेल्थ खेलों से जुड़े कई अफसर भी तिहाड़ में बंद हैं। इतना ही नहीं सीबीआई कह रही है कि अभी उसने टाटा और अंबानी को भी क्लीन चिट नहीं दी है। आजाद भारत में ऐसा मौका कभी नहीं आया जब भ्रष्टाचार के आरोपों में इतने बड़े लोगों पर एक साथ गाज गिरी हो या फिर गिरने वाली हो। भ्रष्टाचार ने दरअसल सारे पुराने रिकॉर्ड तोड़ डाले। एक लाख छिहत्तर हजार करोड़ का टेलीकॉम घोटाला। अस्सी हजार करोड़ का कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला। आदर्श घोटाले में नेताओं और अफसरों ने मिलकर करगिल के शहीदों की विधवाओं का हक मार लिया। आदर्श घोटाला तो इतना संवेदनशील था कि आरोप साबित होने के पहले ही कांग्रेस को महाराष्ट्र के अपने मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण को हटाना पड़ा। भ्रष्टाचार की इस गंगोत्री ने ऐसी हाय तौबा मचायी कि नामी समाजसेवक अन्ना हजारे दिल्ली में आमरण अनशन पर बैठ गये। भ्रष्टाचार के खिलाफ लोकपाल बिल के समर्थन में अनशन पर बैठे अन्ना को मिल रहे आम लोगों के समर्थन ने सरकार को हिला कर रख दिया। और आखिर में सरकार को लोकपाल बिल के गठन के लिये एक ज्वाइंट ड्राफ्टिंग कमेटी का गठन करना पड़ा। हाल के दिनों में ये भ्रष्टाचार के खिलाफ एक बड़ी मुहिम की जीत थी।
2009 में चुनाव हारकर हताश हो चुके विपक्ष को इन घोटालों ने जैसे संजीवनी दे दी। विपक्ष अचानक हमलावर हो गया और उसके चौतरफा हमले ने सरकार को बैकफुट पर ला खड़ा किया। ये विपक्ष की बड़ी जीत थी। विपक्ष अब यूपीए सरकार को आजादी के बाद की सबसे भ्रष्ट सरकार का खिताब दे रहा है। सरकार भी मानती है कि भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा है लेकिन गुमान ये भी है कि भ्रष्टाचार से लड़ने की ताकत भी इसी सरकार में है। भ्रष्टाचार की इस लंबी लिस्ट ने मनमोहन सिंह को इन दो सालों में तबाह करके रख दिया। जिस मनमोहन को कांग्रेस पूंजी की तरह मानती थी, जिनकी छवि एक ईमानदार नेता की थी, घोटालों ने उन्हें एक ऐसा प्रधानमंत्री साबित किया जिसके नाक के नीचे ही सारी बेईमानी होती रही और बेचारे ईमानदार मनमोहन सिंह टुकुर-टुकुर ताकते रहे।
पहली बार भ्रष्टाचार के कठघरे में अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भी खड़ा कर दिया गया। जिस घटना ने सीधे मनमोहन सिंह को लपेटे में लिया वो थी, सीवीसी की नियुक्ति। सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ सीवीसी की नियुक्ति को अवैध करार दिया बल्कि सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय पर टिप्पणी की। इस घटना ने सीधे तौर पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की भूमिका पर सवाल खड़े कर दिए। आजाद भारत के इतिहास में किसी संवैधानिक पद को लेकर इतना नाटक किसी ने नहीं देखा। बतौर मुख्य सतर्कता आयुक्त पी जे थॉमस को तैनात कर सरकार खुद ही नैतिक संकट से घिर गई। सुप्रीम कोर्ट ने जब थॉमस की नियुक्ति को ही खारिज कर दिया तो बट्टा सिर्फ सरकार की साख पर नहीं, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की छवि पर भी लगा। अब तक बेदाग रहे मनमोहन सिंह सीधे निशाने पर इसलिये आये क्योंकि प्रधानमंत्री ही उस समिति की अध्यक्षता करते हैं जो सीवीसी की नियुक्ति करती है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने पहली बार विपक्ष को सीधे प्रधानमंत्री पर हमला करने का मौका दे दिया। इसके पहले विपक्ष का हमला मनमोहन सरकार पर होता था मनमोहन सिंह पर नहीं। सीवीसी की नियुक्ति के लिए बनी समिति में प्रधानमंत्री खुद, गृह मंत्री और विपक्ष के नेता होते हैं। जिस वक्त थॉमस का नाम इस पद के लिए आया था, सुषमा स्वराज ने ये कहते हुए इसका विरोध किया था कि थॉमस के खिलाफ पामोलिन घोटाले में चार्जशीट दाखिल हो चुकी है इसलिए किसी और को इस पद पर बिठाया जाए लेकिन सरकार ने उनके सुझाव की अनदेखी करते हुए उन्हें ही इस पद पर बिठा दिया। बात यहां तक बिगड़ गई कि पी जे थॉमस की नियुक्ति के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री कार्यालय को नोटिस जारी किया। पीएमओ से वो फाइल मंगवा ली जिसमें उनकी नियुक्ति से जुड़ी जानकारियां थीं। सुप्रीम कोर्ट ये जानना चाहता था कि क्या थॉमस के बायोडेटा में इस बात का जिक्र था कि उनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल हो चुकी है। कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की कि क्या एक चार्जशीटेड अधिकारी भ्रष्टाचार के मामलों की जांच कर सकता है। इस पद पर बैठने वाले का दामन पूरी तरह बेदाग होना चाहिए। कुल मिलाकर सरकार को इस मामले में मुंह की खानी पड़ी। अड़ियल थॉमस को आखिकार जाना ही पड़ा। यूपीए सरकार के दो सालों का रिपोर्ट कार्ड गौर से पढ़ें तो लाल रिमार्क कई जगह नजर आएंगे। चाहे विदेश नीति हो, खास तौर पर पाकिस्तान से जुड़े मुद्दे, चाहे रक्षा क्षेत्र में सरकार की अलर्टनेस हो, या फिर मोस्ट वांटेड आतंकवादियों और अपराधियों की लिस्ट। हर जगह छेद नजर आए। लापरवाही ऐसी कि पाकिस्तान को सौंपी मोस्ट वांटेड लिस्ट में कई नाम भारत में ही थे और हमें पता तक नहीं था। क्या ये ऐसी सरकार है जिसमें नेता ज्यादा हैं अफसर कम।
यूपीए सरकार के दो साल। कहने को ये सरकार के लिए जश्न का मौका है। लेकिन ठीक इसी वक्त सरकार एक मोर्चे पर जबदस्त शर्मिदंगी के दौर से गुजर रही है। ये मसला है पाकिस्तान को सौंपी गई 50 आतंकियों की सूची का। भारत का दावा था कि ये आतंकी पाकिस्तान में पनाह लिए बैठे हैं। लेकिन सरकार के इन दावों की तब हवा निकल गई। जब इनमें से दो आतंकी भारत की जेल में ही बंद पाए गए। अब सरकार के सबसे काबिल मंत्रियों में से एक गृहमंत्री पी चिदंबरम सफाई देते फिर रहे हैं।
गलतियों और गफलतों की ये लंबी फेहरिस्त है। इससे पहले हाल ही में डेनमार्क में सरकार को किरकिरी का सामना करना पड़ा। इसी महीने सीबीआई की एक टीम पुरुलिया में हथियार गिराने के मामले के मुख्य अभियुक्त किम डेवी के प्रत्यपर्ण के लिए डेनमार्क पहुंच गई। वहां पहुंच कर सीबीआई को पता चला कि वो उस वारंट के साथ डेनमार्क पहुंच गई है जिसकी मियाद जनवरी में ही खत्म हो चुकी है। बाद में आनन-फानन में नया वारंट डेनमार्क भिजवाया गया। जाहिर है इन गफलतों ने विपक्ष को फिर मौका दे दिया, बीजेपी सीबीआई के बहाने सरकार की लापरवाही को निशाना बना रही है। बात यहीं खत्म नहीं होती। इसके पहले मिस्र के शर्मअलशेख में भी सरकार की भारी किरकिरी हुई थी। ये ऐसा मसला था जिसकी गूंज संसद से लेकर सड़क तक सुनाई दी गई। पहली बार भारत-पाकिस्तान के साझा घोषणा पत्र में बलूचिस्तान का जिक्र आया। प्रधानमंत्री की मौजूदगी में बलूचिस्तान का जिक्र आने को पाकिस्तान की कूटनीतिक जीत माना गया। बवाल मचने पर सरकार ने दबे छिपे तरीके से अपनी गलती मानी। इसी तरह पाकिस्तान के साथ बातचीत शुरू करने के मसले पर भी सरकार के दो बड़े मंत्रालयों के समन्वय की पोल खुल गई। विदेश मंत्री एस एम कृष्णा पाकिस्तान दौरे पर थे इधर देश में गृह सचिव आईएसआई को तमाम गड़बड़ियों के लिए जिम्मेदार बचा रहे थे। पाकिस्तान ने इसे मुद्दा बना लिया। यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल में आम आदमी को सबसे ज्यादा जिस चीज ने परेशान किया, वो है महंगाई। भ्रष्टाचार से बचे तो महंगाई में डूबे। शायद यही अब आम हिंदुस्तानी की नियति हो गई है। दो सालों में तेल के दाम पचास फीसदी बढ़ा दिए गए, खाने पीने की चीजों में आग लगी, प्याज सिर पर चढ़ गया तो दाल भी खोजे न मिली। जरूरत की चीजों के दाम सातवें आसमान पर चढ़ते गए। सरकार की तरफ से कई बार दावे हुए कि जल्द ही कीमतों पर काबू पा लिया जाएगा। लेकिन वो दावे पूरे नहीं हो सके। अगर सरकारी आंकडों पर ही विश्वास किया जाए तो दो साल पहले आटा साढ़े 13 रुपए किलो था जो 16 रुपए किलो हो गया है। उड़द की दाल 57 रुपए प्रति किलो से बढ़ कर 73 रुपए प्रति किलो हो गई। मूंग की दाल 60 रुपए किलो से बढ़ कर 80 रुपए प्रति किलो तक पहुंच गई। कीमतों का ये हाल तब था जब पिछले दो सालों में दर्जनों बार प्रधानमंत्री ने कीमतों को काबू में करने की बाबत बयान दिए। लेकिन प्रधानमंत्री बयान देते रहे लेकिन कीमतें काबू में नहीं आ सकीं। बात सिर्फ दाल और राशन पर ही नहीं रुकी, सरकारी आंकड़ों के मुताबिक दो साल पहले 29 रुपए प्रति किलो मिलने वाली चीनी अब 35 रुपए प्रति किलो से ऊपर बिक रही है। 24 रुपए प्रति किलो मिलने वाला दूध अब 32 रुपए प्रति किलो बिक रहा है। 68 रुपए प्रति किलो मिलने वाला सरसो का तेल अब अस्सी रुपए प्रति किलो से ज्यादा बिक रहा है। बनस्पति घी इन दो सालों में 55 रुपए प्रति किलो से बढ़कर अस्सी रुपए प्रति किलो से ज्यादा पर पहुंच गया।
हैरानी की बात ये कि यूपीए नेताओं ने महंगाई को लेकर चिंता तो खूब जाहिर की। लेकिन महंगाई डायन बयानों से काबू में नहीं आ सकी। इस मामले में सबसे ज्यादा बयान कृषि मंत्री शरद पवार ने दिए। कभी खुद के ज्योतिषी न होने की बात करके पल्ला झाड़ तो कभी प्रधानमंत्री पर ठीकरा फोड़कर पतली गली से निकलने की कोशिश की। बात सिर्फ खाने पीने की चीजों के दाम पर ही नहीं रुकी। जुलाई 2009 में दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 44 रुपए 72 पैसे थी। जो आज 63 रुपए 37 पैसे तक पहुंच गई है। यानी दो साल में पेट्रोल की कीमत में करीब पचास फीसदी की बढ़ोतरी हो गई। पिछले साल जून से अब तक पेट्रोल की कीमतों में आठ बार इजाफा किया जा चुका है। देश के प्रधानमंत्री लगातार दावा करते रहे कि महंगाई पर जल्द ही काबू कर लिया जाएगा। लेकिन सच्चाई ये है कि इन दो सालों में महंगाई दर करीब सवा पांच फीसदी तक बढ़ गई।
IBN7 से साभार

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh